भविष्य की लैब, आज की हकीकत
कल्पना कीजिए, एक वैज्ञानिक अपनी कुर्सी पर बैठकर बस कंप्यूटर में एक कमांड टाइप करता है, और लैब के दूसरी तरफ एक जटिल मशीन अपने आप काम करने लगती है, एक्सपेरिमेंट पूरा करती है और डेटा भी तैयार कर देती है। ये किसी साइंस फिक्शन फिल्म का सीन नहीं, बल्कि दिल्ली आईआईटी के वैज्ञानिकों की नई हकीकत है।
आईआईटी दिल्ली ने एक क्रांतिकारी AI लैब असिस्टेंट विकसित किया है, जिसका नाम ‘आयला’ (AILA – आर्टिफिशल इंटेलिजेंस लैब असिस्टेंट) है। रिसर्च टीम का दावा है कि यह दुनिया का पहला AI एजेंट है जो किसी लैब में अपने आप प्रयोग करने में सक्षम है। आइए समझते हैं कि आयला क्या है, यह कैसे काम करता है, और यह भारत और दुनिया भर में रिसर्च की दुनिया को कैसे बदलने वाला है।
1. लैब की सबसे बड़ी दीवार: 6 महीने की ट्रेनिंग और अंतहीन मेहनत
वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को लैब में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई रिसर्च प्रोजेक्ट शक्तिशाली और जटिल उपकरणों पर निर्भर करते हैं, जिन्हें चलाना आसान नहीं होता।
इन उपकरणों को चलाना सीखने में ही लगभग 6 महीने या उससे भी ज्यादा का समय लग जाता है। यह वैज्ञानिक प्रगति में एक बहुत बड़ी बाधा है। इसके अलावा, प्रयोगों को हाथ से करने में बहुत अधिक मानवीय मेहनत और समय लगता है। इसी चुनौती को दूर करने के लिए एक स्वचालित समाधान की सख्त जरूरत थी।
2. मिलिए ‘आयला’ (AILA) से: भारत का अपना AI लैब असिस्टेंट
आयला का पूरा नाम आर्टिफिशल इंटेलिजेंस लैब असिस्टेंट (AILA) है। इसे आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने तैयार किया है। इस टीम में मुख्य रूप से शामिल हैं:
- प्रोफेसर एन एम अनूप (सिविल इंजीनियरिंग एंड यार्डी स्कूल ऑफ AI)
- प्रोफेसर नित्य नंद गोस्वामी (मटीरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग)
- प्रमुख लेखक और पीएचडी छात्र इंद्रजीत मंडल (स्कूल ऑफ इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च)
यह रिसर्च इतनी महत्वपूर्ण है कि इसे अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘नेचर’ कम्युनिकेशंस में जगह मिली है, जैसा कि **‘नवभारत टाइम्स’ की एक रिपोर्ट** में बताया गया है।
3. आखिर यह AI जादू काम कैसे करता है?
इसे समझना बहुत आसान है। जैसे आप चैटजीपीटी या गूगल जेमिनी से सवाल पूछते हैं और वो आपको टेक्स्ट में जवाब देता है, आयला भी कुछ वैसा ही करता है।
इसकी प्रक्रिया कुछ इस तरह है:
- एक शोधकर्ता आयला को सरल भाषा में एक कमांड (प्रॉम्प्ट) देता है।
- आयला, लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स (LLM) का उपयोग करके इस कमांड को समझता है।
- इसके बाद, AI उस कमांड को एक एक्शन में बदल देता है और लैब में मौजूद मशीन को खुद ऑपरेट करके प्रयोग पूरा करता है।
इसका आउटपुट कोई टेक्स्ट नहीं, बल्कि मशीन द्वारा किया गया एक वास्तविक प्रयोग होता है। यही असली जादू है – आपका कमांड टेक्स्ट नहीं, बल्कि एक असली फिजिकल एक्शन बन जाता है! इसका मतलब है कि अब शोधकर्ता को जटिल ट्रेनिंग की जरूरत नहीं है; उन्हें बस आयला को यह बताना है कि क्या करना है।
Read Also This Post :- कैसे एक मिडिल क्लास भारतीय लड़के ने Google को हिलाकर रख दिया? Perplexity AI की पूरी कहानी
4. पहला सफल परीक्षण और भविष्य की राह
टीम ने आयला को सबसे पहले एटॉमिक फोर्स माइक्रोस्कोप (AFM) पर परखा, जो नैनो टेक्नोलॉजी की दुनिया का एक बेहद शक्तिशाली और संवेदनशील उपकरण माना जाता है। इस पर महारत हासिल करना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। यह माइक्रोस्कोप कई महत्वपूर्ण काम कर सकता है, जैसे:
- सतह की 3D बनावट दिखाना
- खुरदरापन (roughness) मापना
- मटीरियल की कठोरता (hardness) की जानकारी देना
- चिपकने की क्षमता (adhesion) का पता लगाना
- चुंबकीय गुणों (magnetic properties) का विश्लेषण करना
टीम ने आयला का उपयोग करके एक साल में 100 सफल प्रयोग पहले ही पूरे कर लिए हैं।
5. आयला का आगमन: अब कैसे बदलेगी रिसर्च की दुनिया?
यह तकनीक रिसर्च करने के पुराने तरीकों को पूरी तरह से बदल सकती है। आइए देखें कैसे:

| पुरानी चुनौती (Old Challenge) | आयला का समाधान (AILA’s Solution) |
| लंबी ट्रेनिंग: उपकरणों को सीखने में 6-6 महीने लगते थे। | तुरंत काम: बस कमांड देने की जरूरत, कोई लंबी ट्रेनिंग नहीं। |
| धीमी रफ्तार: प्रयोगों में बहुत ज्यादा इंसानी समय लगता था। | तेज रिसर्च: आयला तेजी से प्रयोग करता है, जिससे रिसर्च को रफ्तार मिलती है। |
| अधिक मेहनत: हर काम वैज्ञानिक को खुद करना पड़ता था। | स्वचालित काम: प्रयोग अपने आप होते हैं, जिससे इंसानी मेहनत कम होती है। |
| त्रुटि की संभावना: इंसानी गलती की गुंजाइश बनी रहती थी। | सटीक परिणाम: मशीन द्वारा काम होने से परिणामों में सटीकता बढ़ती है। |
जैसा कि प्रोफेसर अनूप कृष्णन ने बताया, यह तकनीक वैज्ञानिक इकोसिस्टम के लिए एक ‘बड़ा बदलाव’ लाने की क्षमता रखती है, जो शोध की गति और गुणवत्ता दोनों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी।
6. भविष्य की संभावनाएं: किन-किन क्षेत्रों को मिलेगा फायदा?
आयला का उपयोग केवल एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। इससे कई क्षेत्रों में क्रांति आ सकती है, जिनमें शामिल हैं:
- मेडिकल (Medical)
- जियोलॉजी (Geology)
- सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering)
- एनवायरमेंट (Environment)
आयला जैसी तकनीक भारत में अधिक से अधिक छात्रों और शोधकर्ताओं को सशक्त बना सकती है। जो 6 महीने की लंबी ट्रेनिंग एक बाधा थी, उसे हटाकर यह छोटे लैब में भी उच्च-स्तरीय शोध को संभव बनाएगी, जिससे विज्ञान के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता और बढ़ेगी।
निष्कर्ष: भारत के लिए गर्व का एक और पल
आईआईटी दिल्ली का आयला एक विश्व-स्तरीय इनोवेशन है जो लैब में होने वाले प्रयोगों को AI की मदद से स्वचालित करता है। यह तकनीक रिसर्च को तेज, अधिक कुशल और वैज्ञानिकों के लिए आसान बनाएगी। यह भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए एक और गर्व का क्षण है। यह सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि भारत के हजारों युवा वैज्ञानिकों के लिए एक उम्मीद है, जो अब बिना किसी बाधा के दुनिया की सबसे बड़ी खोजों में अपना योगदान दे सकेंगे।
Q1: AILA क्या है?
AILA (Artificially Intelligent Lab Assistant) एक AI-आधारित लैब असिस्टेंट है, जिसे IIT दिल्ली के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है जो प्रयोगशाला में वास्तविक प्रयोग कर सकता है। IIT Delhi
Q2: AILA कैसे काम करता है?
AILA शोधकर्ताओं को सरल भाषा में दिए गए निर्देशों को समझता है, उपकरणों को नियंत्रित करता है और प्रयोगों को स्वचालित रूप से पूरा करता है। AajTak
Q3: AILA के फायदे क्या हैं?
ये जटिल उपकरणों को चलाने में लगने वाला समय कम करता है, प्रयोगों की गति बढ़ाता है और इंसानी त्रुटि को कम करता है। AajTak
Q4: इसे कहाँ इस्तेमाल किया गया है?
AILA को विशेष रूप से Atomic Force Microscope (AFM) पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। IIT Delhi
Q5: क्या AILA शोधकर्ताओं की नौकरी ले लेगा?
सरकार और IIT की टीम के मुताबिक इसका उद्देश्य शोधकर्ताओं को सहायता देना है, न कि उनकी जगह लेना। AajT

Yogesh banjara India के सबसे BEST AI साइट AI Hindi के Founder & CEO है । वे Ai Tools और AI Technology में Expert है | अगर आपको AI से अपनी life को EASY बनाना है तो आप हमारी site ai tool hindi पर आ सकते है|
