2025 खत्म हो रहा है, AI की दुनिया से हमने क्या सीखा?
बाय-बाय 2025! ये साल भी खत्म होने को है, और टेक्नोलॉजी की दुनिया में, खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में, जो उथल-पुथल मची है, वो देखने लायक थी। अब जब हम 2026 की दहलीज़ पर खड़े हैं, तो ये सही समय है पीछे मुड़कर देखने का कि इस साल ऐसा क्या-क्या हुआ जिसने हम जैसे भारतीय टेक प्रोफेशनल्स और स्टूडेंट्स के भविष्य पर गहरा असर डाला है।
इस ब्लॉग पोस्ट में हम 2025 के सबसे बड़े AI इवेंट्स का हिसाब-किताब करेंगे। हम जानेंगे कि दुनिया भर में क्या बदला, भारत ने क्या मौके गंवाए, क्या नए अवसर पैदा हुए, और इन सब का हमारे करियर और देश के लिए क्या मतलब है। चलिए, शुरू करते हैं जनवरी से और देखते हैं कि ये साल हमें क्या सिखाकर जा रहा है।
2. जब अमेरिकी दबदबा हिला: चीन और दूसरों ने कैसे दी AI में चुनौती
2024 के अंत तक यही माहौल था कि AI का मतलब OpenAI और अमेरिका है। लेकिन 2025 की शुरुआत ने इस सोच को पूरी तरह बदल दिया। जनवरी में “डीपसीक मोमेंट” आया, जब चीन की कंपनी DeepSeek ने अपना AI मॉडल लॉन्च किया। इसने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि टॉप-क्वालिटी AI बनाना सिर्फ अमेरिका का खेल नहीं है।
यह सिलसिला पूरे साल चलता रहा। Moonshot AI और Alibaba के Qwen जैसे चीनी मॉडल्स ने मार्केट में अपनी जगह बना ली। इसकी तीन बड़ी वजहें थीं:
- ये मॉडल्स अमेरिकी मॉडल्स के लगभग बराबर शक्तिशाली थे।
- ये बहुत ज्यादा सस्ते थे।
- ये ओपन-वेट थे, यानी कोई भी डेवलपर इन्हें बिना किसी से पूछे अपने प्रोजेक्ट्स में इस्तेमाल कर सकता था।
इसने AI टेक मार्केट में अमेरिका के एकतरफा दबदबे को हिलाकर रख दिया। लेकिन जब चीन कुछ करता है, तो भारत में भी हलचल होती है। पूरे ट्विटर पर परेशानी मच गई कि यार, चीन ने डीपसीक बना लिया, “इंडिया का डीपसीक मोमेंट” कहाँ है?
3. भारत का AI सपना: बड़े वादे और धीमी रफ़्तार
चीन की तरक्की देखकर भारत में भी जोश जागा। हम भी “हम होंगे कामयाब” और “सारे जहाँ से अच्छा” वाला जज़्बा लेकर AI की दुनिया में कूद पड़े। इसी जोश के जवाब में, फरवरी में बड़े जोर-शोर से इंडिया AI मिशन लॉन्च किया गया और बजट की घोषणा हुई। स्टार्टअप्स को बुलाया गया और उन्हें GPU क्लस्टर (AI मॉडल बनाने के लिए जरूरी सुपर कंप्यूटर) देने का वादा किया गया।
लेकिन यह उम्मीद जल्द ही धुंधली पड़ने लगी। असलियत कुछ और ही निकली:
- छोटा बजट: अमेरिका और चीन AI पर जितना खर्च कर रहे हैं, उसकी तुलना में हमारा बजट बहुत कम था।
- अस्पष्टता: जो छोटा बजट था भी, उसमें कोई स्पष्टता नहीं थी कि पैसा कहाँ और कैसे खर्च होगा। पूरे साल जमीन पर कुछ खास काम नहीं हुआ।
- चुनिंदा स्टार्टअप्स: जिन हजारों स्टार्टअप्स ने मदद के लिए अप्लाई किया, उनमें से बहुत कम को चुना गया।
इसका नतीजा यह हुआ कि भारत के प्रमुख AI स्टार्टअप्स संघर्ष करते दिखे। Sarvam AI, जिसने वॉइस AI में वाकई अच्छा काम किया था, को अपनी टीम छोटी करनी पड़ी (डाउनसाइजिंग)। वहीं, Kritrim, जो पहले ही दिन यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर की कंपनी) बन गया था, वहां भी छंटनी और फायरिंग की खबरें आने लगीं।
यह एक बहुत बड़ा विरोधाभास था। एक तरफ अमेरिका में AI इंजीनियरों को करोड़ों की फंडिंग और सैलरी मिल रही थी, और दूसरी तरफ भारत के AI स्टार्टअप्स अपने ही लोगों को नौकरी से निकाल रहे थे। इससे पता चलता है कि हमारा AI मिशन सही रास्ते पर नहीं चल रहा था।
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4. जॉब मार्केट में भूचाल: छंटनी, रुकी हुई हायरिंग और फ्रेशर्स की चिंता
इस साल का सबसे बड़ा असर भारतीय जॉब मार्केट पर पड़ा। मई में, माइक्रोसॉफ्ट ने चुपचाप 6000 कर्मचारियों को निकाल दिया, और कुछ महीने बाद 9000 और लोगों की छंटनी कर दी। आप सोचेंगे कि माइक्रोसॉफ्ट की छंटनी से हमें क्या? लेकिन इसका सीधा और गहरा असर भारत पर पड़ता है।
इसे “सेकंड और थर्ड-ऑर्डर इफ़ेक्ट” कहते हैं। जब Microsoft और Amazon जैसी बड़ी टेक कंपनियां अपने खर्चे कम करती हैं, तो वे सबसे पहले अपने वेंडर्स का काम बंद करती हैं। भारत की TCS और Infosys जैसी कंपनियां इन विदेशी कंपनियों के लिए वेंडर का काम करती हैं, जैसे सॉफ्टवेयर टेस्टिंग और QA। जब वहां काम कम होता है, तो यहां भी जॉब्स पर संकट आ जाता है। अगर कोई कंपनी अपने परमानेंट कर्मचारियों को निकाल रही है, तो इसका मतलब है कि वेंडर्स का काम तो पहले ही बंद हो चुका होगा।
इसका सबसे बुरा असर फ्रेशर्स पर पड़ा। 2025 में TCS और Infosys जैसी बड़ी कंपनियों द्वारा की जाने वाली मास रिक्रूटिंग रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई। इसके दो मुख्य कारण थे:
- देश में मशरूम की तरह, कुकुरमुत्तों की तरह खुले घटिया इंजीनियरिंग कॉलेज, जिनका सिलेबस सालों से अपडेट नहीं हुआ है।
- मार्केट का तेजी से AI स्किल्स की तरफ झुकना, जो इन कॉलेजों में पढ़ाया ही नहीं जाता।
यहां तक कि अनुभवी लोग भी संघर्ष करते दिखे। असल समस्या यह है कि जिन लोगों के पास सालों का एक्सपीरियंस है, वो “IT एक्सपीरियंस” है, “सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग एक्सपीरियंस” नहीं। और कंपनियां अब ऐसे लोग ढूंढ रही हैं जो नए AI टूल्स पर काम कर सकें, न कि पुरानी टेक्नोलॉजी पर।
5. उम्मीद की नई किरणें: भारतीय डेवलपर्स के लिए नए मौके कहाँ हैं?
इतनी बुरी खबरों के बीच, 2025 में उम्मीद की कुछ नई किरणें भी दिखाई दीं, जहाँ भारतीय डेवलपर्स के लिए बड़े मौके बन रहे हैं।
पहला मौका है “RL Gym”। AI मॉडल्स को इंटरनेट पर मौजूद लगभग सारे डेटा पर ट्रेन किया जा चुका है। अब उन्हें और बेहतर बनाने के लिए नए डेटा की जरूरत है, जो अब आसानी से उपलब्ध नहीं है। इसका समाधान है RL Gym (Reinforcement Learning Gymnasium), जिसमें AI एजेंट्स को सिखाने के लिए नकली (सिम्युलेटेड) वातावरण बनाए जाते हैं। यह माहौल कोड करके डिजाइन करना होता है, और यह काम बड़े पैमाने पर भारत में आ रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे डेवलपर्स के पास अनुशासन है, उन्हें इस तरह के काम की समझ है, और भारत ही एकमात्र देश है जो इस काम के लिए लाखों डेवलपर्स उपलब्ध करा सकता है।

दूसरा बड़ा मौका है “Evals” (Evaluations)। AI एजेंट्स हमेशा एक जैसा या उम्मीद के मुताबिक व्यवहार नहीं करते। इसलिए उन्हें असल दुनिया में इस्तेमाल करने से पहले हजारों तरीकों से टेस्ट करना पड़ता है। इन टेस्ट को लिखने और करने की प्रक्रिया को ‘Evals’ कहते हैं। यह आज भारत के लिए वैसा ही एक बड़ा मौका है जैसा एक दशक पहले मोबाइल ऐप डेवलपमेंट का था। कई भारतीय डेवलपर्स और छोटी कंपनियां Evals के जरिए आज अच्छा पैसा कमा रही हैं।
ये दोनों क्षेत्र भारत के लिए बड़े रोजगार के अवसर पैदा कर रहे हैं, जहाँ युवा अपना करियर और कंपनियां अपना बिज़नेस बना सकती हैं।
6. 2025 के बड़े उलटफेर: स्टार्टअप्स, ट्रेड वॉर और ब्राउज़र की जंग
इस साल कुछ और भी बड़ी घटनाएं हुईं जिन्होंने दुनिया और भारत पर असर डाला।
सबसे पहले, अमेरिका में AI स्टार्टअप्स की वैल्यूएशन आसमान छू गईं। जून के महीने में AI कंपनियों में इतना पैसा लगा कि अमेरिका में रातों-रात 50 नए डॉलर-बिलियनियर्स (अरबपति) बन गए। यह दिखाता है कि सारा पैसा AI की तरफ जा रहा था।
आइए, अमेरिका और भारत के AI स्टार्टअप सीन की तुलना करें:
| अमेरिका (US) | भारत (India) |
| स्टार्टअप्स को अरबों डॉलर की फंडिंग मिल रही थी। | फंडिंग का दूसरा राउंड भी नहीं मिल पा रहा था। |
| फाउंडर्स और इंजीनियर्स रातों-रात अरबपति बन रहे थे। | स्टार्टअप्स में छंटनी और फायरिंग हो रही थी। |
| नए-नए AI प्रोडक्ट्स बाजार में आ रहे थे। | बड़े वादों के बावजूद कोई ठोस प्रोडक्ट नहीं आया। |
| AI टैलेंट को मुँह-मांगी सैलरी मिल रही थी। | AI प्रोफेशनल्स को नौकरी से निकाला जा रहा था। |
इसके अलावा, भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर भी छिड़ गया। एक समय जो “माय फ्रेंड ट्रंप” हुआ करते थे, वो “माय एनिमी ट्रंप” निकले। सच कहें तो, “दुश्मन ना करे दोस्त ने वो काम किया है, उम्र भर का गम हमें इनाम दिया है,” ऐसा कर गए हैं ट्रंप महाराज। उन्होंने भारतीय सामानों पर 50% का भारी टैरिफ लगा दिया, जिससे कपड़ा और दूसरे उद्योगों को भारी नुकसान हुआ। साथ ही, H1B वीजा की फीस बढ़ाकर $100k (लगभग 80-85 लाख रुपये) से ज्यादा कर दी गई, जिससे अमेरिका जाकर पढ़ने और काम करने वाले भारतीय छात्रों और प्रोफेशनल्स के लिए मुश्किलें बढ़ गईं।
अगस्त में, सैम ऑल्टमैन ने बड़े तामझाम के साथ GPT-5 लॉन्च किया, लेकिन यह उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। इसका एक अच्छा असर यह हुआ कि लोगों का AGI (Artificial General Intelligence) से डर कम हो गया। अब सबको समझ आ गया है कि AI हमारी नौकरी नहीं छीनेगा, बल्कि एक “कोपायलट” या असिस्टेंट की तरह काम करेगा।
भारत के लिए एक अच्छी खबर अक्टूबर में आई, जब Google ने विशाखापत्तनम में 15 बिलियन डॉलर के डेटा सेंटर का ऐलान किया। यह इस बात का संकेत है कि अब बड़ी कंपनियां बेंगलुरु जैसे Tier-1 शहरों से बाहर निकलकर विशाखापत्तनम जैसे Tier-2 शहरों में निवेश कर रही हैं।
आखिर में, 17 साल बाद “ब्राउज़र वॉर्स” की वापसी हुई। Perplexity ने ‘Comet’ और OpenAI ने ‘Atlas’ ब्राउज़र लॉन्च करके Google Chrome के एकछत्र राज को चुनौती दी। जवाब में Google भी ‘Disco’ नाम से अपना नया ब्राउज़र लेकर आ रहा है।
7. साल का अंतिम हिसाब: मुफ़्त AI के दौर में भारत कहाँ खड़ा है?
नवंबर आते-आते एक और बड़ा ट्रेंड देखने को मिला। Google, Perplexity और ChatGPT जैसी कंपनियों ने अपने प्रीमियम यानी पेड AI मॉडल्स को आम जनता के लिए मुफ्त कर दिया।
भारत पर इसका दोहरा असर पड़ा। एक तरफ, आम यूजर्स के लिए यह बहुत सुविधाजनक है। लेकिन इसका एक बुरा असर यह है कि अब हम अपना खुद का भारतीय AI मॉडल बनाने के बारे में और भी कम सोचेंगे। जब दुनिया की सबसे अच्छी टेक्नोलॉजी मुफ्त में मिल रही है, तो अपना बनाने की जहमत कौन उठाए?
साल के अंत तक यह साफ हो गया कि AI में किसी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। OpenAI का दबदबा पहले चीनी मॉडल्स ने तोड़ा, और फिर Google अपने Gemini 3 के साथ आया और पूरी बाजी पलटने लगा। Google का ऐप “नैनो बनाना” साल के मध्य तक अमेरिका में नंबर वन हिट ऐप बन चुका था। इससे साबित हो गया कि यह रेस किसी के लिए भी आसान नहीं है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण चीन है। अमेरिका ने चीन को Nvidia के सबसे एडवांस चिप्स देने पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बावजूद, चीन गेम में उतरा और उतर के अमेरिका का नाक-मुंह तोड़ दिया है।
और हम? हमारे पास दुनिया का सबसे ज्यादा डेटा है, सबसे ज्यादा युवा टैलेंट है, लेकिन हम अभी भी सिर्फ घोषणाओं और भाषणों में अटके हुए हैं। हमारे पास एक भी ऐसा बड़ा AI प्रोडक्ट नहीं है जिसे हम दुनिया को दिखा सकें। यह एक बहुत बड़ा मौका है जिसे हम गंवा रहे हैं।
8. निष्कर्ष: 2026 में हमारे लिए आगे का रास्ता क्या है?
तो, जब हम 2026 में कदम रख रहे हैं, तो हमारे सामने चुनौतियां साफ हैं: अमेरिका के साथ ट्रेड टैरिफ, फ्रेशर्स की हायरिंग का संकट, और अपना खुद का बड़ा AI मॉडल बनाने में कोई खास प्रगति न होना। 2025 का साल हमारे लिए इन कड़वी सच्चाइयों के साथ खत्म हो रहा है।
लेकिन जैसा हमने देखा, मौके भी हैं। RL Gym और Evals जैसे नए क्षेत्र भारतीय डेवलपर्स के लिए दरवाजे खोल रहे हैं। हमें इन मौकों को पहचानना होगा और इन्हें भुनाना होगा।
अंत में, सरकारें और कंपनियां अपना काम करेंगी, लेकिन हम और आप जैसे लोग क्या कर सकते हैं? हम सिर्फ इतना कर सकते हैं कि मेहनत से अपनी स्किल्स को बेहतर बनाएं, नई चीजें सीखें और खुद को इस बदलती दुनिया के लिए तैयार करें। जैसे कहा जाता है, “बूंद-बूंद से घड़ा भरता है”। जब हम सब अपने स्तर पर बेहतर होंगे, तो देश भी अपने आप आगे बढ़ेगा।
External Link (Trustworthy):
➡️ https://www.niti.gov.in
(भारत सरकार की आधिकारिक नीति एवं प्लानिंग संसाधन वेबसाइट – बिना किसी विवाद या गलत दावे के)
मैं आशा करता हूँ कि यह लेख आपको सोचने पर मजबूर करेगा। 2026 में हमें सिर्फ बातें नहीं, बल्कि काम करके दिखाना होगा।
जय हिंद।
और हाँ, आप सभी को नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो! मैं कामना करता हूँ कि नया साल आपके, आपके परिवार और हम सबके जीवन में उन्नति और प्रगति लेकर आए।
Happy New Year!
प्रश्न 1: 2025 में AI की दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव क्या रहा?
उत्तर: चीन के DeepSeek जैसे मॉडल्स ने अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देकर प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी।
प्रश्न 2: भारत में AI स्टार्टअप्स को किस चुनौती का सामना करना पड़ा?
उत्तर: फंडिंग की कमी, अस्पष्ट नीतियां, और इंफ्रास्ट्रक्चर की धीमी प्रगति।
प्रश्न 3: 2025 में भारतीय जॉब मार्केट पर AI का क्या असर पड़ा?
उत्तर: बड़ी कंपनियों में छंटनी, हायरिंग फ्रीज और फ्रेशर्स के लिए सीमित अवसर।
प्रश्न 4: 2026 में भारतीय डेवलपर्स के लिए नए अवसर कहाँ हैं?
उत्तर: RL Gym और AI Evals जैसे उभरते क्षेत्रों में स्किल्ड डेवलपर्स की मांग बढ़ रही है।
प्रश्न 5: क्या AGI का डर अभी भी असल है?
उत्तर: GPT-5 के बाद डर कम हुआ; अब AI को “को-पायलट” की तरह देखा जा रहा है, न कि खतरा।
प्रश्न 6: भारत AI में आगे कैसे बढ़ सकता है?
उत्तर: मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर, स्किल अपग्रेड, और ओपन मॉडल्स पर प्रोडक्ट-निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाकर।

Yogesh banjara India के सबसे BEST AI साइट AI Hindi के Founder & CEO है । वे Ai Tools और AI Technology में Expert है | अगर आपको AI से अपनी life को EASY बनाना है तो आप हमारी site ai tool hindi पर आ सकते है|
